आगम के दर्पण में साधुओं की सामायिक-प्रतिक्रमण क्रिया
आगम के दर्पण में साधुओं की सामायिक-प्रतिक्रमण क्रिया जैनेश्वरी दीक्षा लेने के बाद दिगम्बर जैन साधु-साध्वी आत्महित की ओर अग्रसर होते हैं क्योंकि आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव के वचनानुसार ‘‘आदहिदं कादव्वं, जइ सक्कइ परहिदं च कादव्वं। आदहिद परहिदादो आदहिदं सुट्ठकादव्वं। अर्थात् साधु को सर्वप्रथम आत्महित की ओर ध्यान देना चाहिए, पुनः परहित भी जितना संभव हो...