गुरु-शिष्य की व्यवस्था जो रत्नत्रय को धारण करने वाले नग्न दिगंबर मुनि हैं वे गुरु कहलाते हैं। इनके आचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीन भेद माने हैं। ये तीनों प्रकार के गुरु अट्ठाईस मूलगुण के धारक होते हैं। उनको बताते हैं- वदसमिदिंदियरोधो लोचो आवासयमचेलमण्हाणं। खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेयभत्तं च।। एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता। एत्थ पमादकदादो आइचारादो…
उत्तम पात्र मुनियों की सार्थक नामावली दर्शनप्रतिमा, व्रतप्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास प्रतिमा, कृषि आदि त्याग प्रतिमा, दिवामैथुन त्याग प्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, सचित्तत्याग प्रतिमा, परिग्रहत्याग प्रतिमा, आरंभत्याग प्रतिमा और उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा ये ग्यारह प्रतिमायें हैं। अन्यत्र ग्रन्थों में श्री कुंदकुंद आदि आचार्यों द्वारा कथित नाम से यहाँ कुछ अंंतर है। यथा-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तत्याग,…
१०. चातुर्वर्ण्यसंघ चतुर्वर्ण श्रमण संघ से ऋषि, मुनि, यति और अनगार ऐसे चार भेद रूप साधु लिये जाते हैं। १. ऋषि-ऋद्धि को प्राप्त हुए साधु ऋषि कहलाते हैं। इनके भी चार भेद हैं-राजर्षि, ब्रह्मर्षि, देवर्षि और परमर्षि। विक्रिया ऋद्धि और अक्षीण ऋद्धिधारी राजर्षि हैं। बुद्धि ऋद्धि और औषधि ऋद्धिधारी ब्रह्मर्षि हैं। गगन गमन ऋद्धि से…
आचार्यश्री वादिराजसूरि के जीवनवृत्त का पुनरीक्षण —डॉ. जयकुमार जैन प्रवक्ता संस्कृत विभाग, एस. डी. स्नातकोत्तर कालेज मुजफ्फरनगर (उ. प्र.) संस्कृत साहित्य के विशाल भण्डार के अनुशीलन से पता चलता है कि भारतवर्ष में सुरभारती के सेवक वादिराज नाम वाले अनेक विद्वान हुए हैं। इनमें पाश्र्वनाथचरित—यशोधरचरितादि के प्रणेता वादिराजसूरि सुप्रसिद्ध हैं, जो न्यायविनिश्चय पर विवरण नाम्नी…