45. थोस्सामि स्तव: (चतुर्विंशतिस्तव:)
कृतिकर्म विधि (अध्याय २) थोस्सामि स्तव: (चतुर्विंशतिस्तव:) (संस्कृत एवं हिन्दी टीका सहित) थोस्सामि हं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंतजिणे। णरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पण्णे१ ।।१।। थोस्सामि स्तव की हिन्दी टीका (२४ तीर्थंकरों की स्तुति) अमृतर्विषणी टीका— आत्मा के स्वरूप को ढकने वाले ज्ञानावरण तथा दर्शनावरणरूप मल को धोने वाले, धोकर नष्ट करने वाले, चक्रवत्र्यादि श्रेष्ठ पुरुषों से पूज्य…