37. चैत्यवन्दनाष्टक
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) चैत्यवंदनाष्टक (गणिनी ज्ञानमती विरचित) त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूं। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूं।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे। वायुसुर के छ्यानवे लाख सुपरण के बाहत्तर लक्ष कहे।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिक द्वीपकुमार…