07. इन्द्रिय मार्गणा
योगमार्गणा (सप्तम अधिकार) इंद्रिय का स्वरूप अहमिंदा जह देवा, अविसेसं अहमहंति मण्णंता। ईसंति एक्कमेक्कं, इंदा इव इन्दिये जाण।।५३।। अहमिन्द्रा यथा देवा अविशेषमहमहमिति मन्यमाना:। ईशते एवैकमिन्द्रा इव इन्द्रियाणि जानीहि।।५३।। अर्थ—जिस प्रकार अहमिन्द्र देवों में दूसरे की अपेक्षा न रखकर प्रत्येक अपने-अपने को स्वामी मानते हैं, उसी प्रकार इंद्रियाँ भी हैं। भावार्थ —इंद्र के समान जो हो…