7. अप्रमत्तविरत गुणस्थान
७. अप्रमत्तविरत गुणस्थान संज्वलन और नोकषाय के मंद उदय से सकल संयमी मुनि के प्रमाद नहीं है अत: ये अप्रमत्तविरत कहलाते हैं। इसके दो भेद हैं—स्वस्थान अप्रमत्त, सातिशय अप्रमत्त। जब तक चारित्र मोहनीय की २१ प्रकृतियों का उपशमन, क्षपण कार्य नहीं है किन्तु ध्यानावस्था है तब तक स्वस्थान अप्रमत्त हैं । जब २१ प्रकृतियों का…