मोक्षमार्ग के लिए रत्नत्रय की उपादेयता इस जगत् में चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते हुए इस जीव ने एक प्रदेश भी ऐसा नहीं छोड़ा है कि जहाँ जन्म न लिया हो क्योंकि सर्वत्र भ्रमण कर चुका है। जिनेन्द्र भगवान के वचनों को नहीं प्राप्त करते हुए ही इस जीव ने संसार में भ्रमण किया…
आर्यिकाओं की नवधाभक्ति आगमोक्त है आर्यिकाएँ यद्यपि उपचार से महाव्रती हैं फिर भी वे अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करती हैं, नवधाभक्ति की पात्र हैं और सिद्धांत ग्रंथ आदि को पढ़ने का, लिखने का उन्हें अधिकार है। इस विषय पर मैं आपको आगम के परिप्रेक्ष्य में बताती हूँ- चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज की परम्परा में जो…
आहार प्रत्याख्यान कब करना? दिगम्बर जैन साधु-साध्वी मंदिर में जाकर मध्यान्ह देववन्दना और गुरुवंदना करके आहार को निकलते हैं ऐसा मूलाचार टीका, अनगार धर्मामृत आदि में विधान है फिर भी आजकल प्रात: ९ बजे से लेकर ११ बजे तक के काल में आहार को निकलते हैं। संघ के नायक आचार्य आदि गुरु पहले निकलते हैं…
‘‘आचार्य कुन्दकुन्द अत्यन्त वीतरागी तथा अध्यात्म वृत्ति के साधु थे उनके अनोकों नाम प्रसिध्द हैं,कुन्दकुन्द, वक्रग्रीव, एलाचार्य, गृद्धपिच्छ और पद्मनंदि।
मूलाचार श्री कुन्दकुन्ददेव की ही रचना है |
गुरू-शिष्य की व्यवस्था जो रत्नत्रय को धारण करने वाले नग्न दिगंबर मुनि हैं वे गुरु कहलाते हैं। इनके आचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीन भेद माने हैं। ये तीनों प्रकार के गुरु अट्ठाईस मूलगुण के धारक होते हैं। उनको बताते हैं- वदसमिदिंदियरोधो लोचो आवासयमचेलमण्हाणं। खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेयभत्तं च।। एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता। एत्थ पमादकदादो अइचारादो…
मुनियों की सामाचार विधि (मूलाचार ग्रंथ के आधार से) (सर्व आरंभ और परिग्रह से रहित धर्मध्यान में तत्पर रहने वाले दिगम्बर मुनि अट्ठाईस भेदरूप मूलगुणों का पालन करते हुए अहर्निश जो अपनी प्रवृत्ति करते हैं उसका दिग्मात्र वर्णन) जो मुनि अपने जीवन में निरतिचार अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करते हैं उनकी प्रवृत्ति वैâसी होती है…
दिगम्बर जैन मुनि जगत्पूज्य हैं सिद्धपद के इच्छुक जो महापुरुष पंंचेन्द्रिय के विषयों की इच्छा समाप्त करके सम्पूर्ण आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर देते हैं तथा ज्ञान, ध्यान और तप में सदैव तत्पर रहते हैं, वे ही मुक्तिपथ के साधक होने से सच्चे साधु कहलाते हैं। वे महामना दिगम्बर अवस्था को धारण कर लेते…
दु:षमकाल में भावलिंगी मुनि होते हैं दिगंबर जैन संप्रदाय में पांच परमेष्ठी के अंतर्गत आचार्य, उपाध्याय और साधु इन परमेष्ठियों को दिगंबर मुनिमुद्रा का धारक ही माना है। इन दिगंबर मुनियों के दो भेद होते हैं ऐसा आगम में कथन है। यथा- ‘‘जिनेन्द्रदेव ने मुनियों के जिनकल्प और स्थविरकल्प ऐसे दो भेद कहे हैं।’’ जिनकल्पी…
उत्तम पात्र मुनियों की सार्थक नामावली दर्शनप्रतिमा, व्रतप्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास प्रतिमा, कृषि आदि त्याग प्रतिमा, दिवामैथुन त्याग प्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, सचित्तत्याग प्रतिमा, परिग्रहत्याग प्रतिमा, आरंभत्याग प्रतिमा और उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा ये ग्यारह प्रतिमायें हैं। अन्यत्र ग्रन्थों में श्री कुंदकुंद आदि आचार्यों द्वारा कथित नाम से यहाँ कुछ अंंतर है। यथा-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तत्याग,…