15. पंचमकाल में मुनियों का अस्तित्व
पंचमकाल में मुनियों का अस्तित्व अहो! दु:षमकालांतं श्रमणाश्चार्यिका इह। विहरन्ति निराबाधं कुर्युस्ते ताश्च मंगलम्।।१।। अहो! प्रसन्नता की बात है कि इस भरतक्षेत्र में दु:षमकाल के अंत तक मुनि और आर्यिकायें निराबाध विहार करते रहेंगे। वे मुनि और आर्यिकायें सदा मंगल करें। निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनियों में जो जिनकल्पी और स्थविरकल्पी भेद हैं, उनका क्या स्वरूप है…