05. बारह अनुप्रेक्षा (प्राकृत)
बारह अनुप्रेक्षा (प्राकृत) (श्री कुन्दकुन्ददेवकृत बारह अनुप्रेक्षा से उद्धृत) -मंगलाचरण- सिद्धे णमंसिदूण य झाणुत्तमखवियदीहसंसारे। दह दह दो दो य जिणे दह दो अणुपेहणा वुच्छं।।१।। जो उत्तम ध्यान के द्वारा दीर्घ संसार का नाश कर चुके हैं ऐसे सिद्ध भगवान को नमस्कार होवे। पुन: दस-दस, दो और दो ऐसे (१०+१०+२+२=२४) चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करके मैं…