12. सल्लेखना
सल्लेखना मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता।।२२।। मरण के समय होने वाली सल्लेखना को प्रेमपूर्वक धारण करना चाहिये। जीव के अपने परिणामों से ग्रहण किये हुये आयु, इन्द्रिय और बल का कारणवश क्षय होना मरण है। इसके दो भेद हैं-नित्यमरण और तद्भव मरण। जो प्रतिक्षण आयु आदि का क्षय हो रहा है वह नित्य मरण है। नूतन शरीर…