15. शास्त्र स्वाध्याय कभी व्यर्थ नहीं जाता
जो प्राणी विनयपूर्वक श्रुत/शास्त्र को पढ़ता है वह पढ़ा गया श्रुत आदि प्रमाद से कभी विस्मृत भी हो जावे, तो अगले भव में वह कभी न कभी उपलब्ध हो जाता है तथा केवलज्ञान की प्राप्त कराने में भी वह स्वाध्याय कारण बन जाता है।
जैन सिद्धान्त में चार अनुयोग माने गये हैं-प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।इनका क्रमपूर्वक अध्ययन करना ही स्वाध्याय कहलाता है।