जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में षट काल परिवर्तन होता रहता है | जम्बूद्वीप में 458 अकृत्रिम चैत्यालय हैं |
तीन लोक : एक दृष्टि में सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित अनंतानंत अलोकाकाश के बहुमध्य भाग में ३४३ राजू प्रमाण पुरुषाकार लोकाकाश है। यह लोकाकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पांचों द्रव्यों से व्याप्त है। आदि और अन्त से रहित-अनादि अनंत है, स्वभाव से ही उत्पन्न हुआ है। छह द्रव्यों से सहित यह लोकाकाश…
जैन भूगोल – एक दृष्टि में यह तीन लोक अनादिनिधन-अकृत्रिम हैं। इसको बनाने वाला कोई भी ईश्वर आदि नहीं है। इसके मध्यभाग में कुछ कम तेरह राजू लंबी, एक राजू चौड़ी और मोटी त्रसनाली है। इसमें सात राजू अधोलोक है एवंं सात राजू ऊँचा ऊध्र्वजलोक है तथा मध्य में निन्यानवे हजार चालीस योजन ऊँचा और…
जैन भूगोल-परम्परा जो राग-द्वेष, क्रोध, मान, माया,लोभ आदि अंतरंग शत्रुओं को वश में करके कर्म शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर चुके हैं वे ‘‘जिन’’ कहलाते हैं। उन जिन भगवान के उपासक जैन हैं। प्राणीमात्र पर दया की भावना रखने से यह जैनधर्म ‘‘सार्वभौम’’ धर्म है, इन्हीं जिन भगवान के द्वारा कथित भूगोल जैन-भूगोल कहलाता…
भूभ्रमण खंडन कोई आधुनिक विद्वान कहते हैं कि जैनियों की मान्यता के अनुसार यह पृथ्वी वलयाकार चपटी गोल नहीं है। किन्तु यह पृथ्वी गेंद या नारंगी के समान गोल आकार की है। यह भूमि स्थिर भी नहीं हैं। हमेशा ही उपर नीचे घूमती रहती है। तथा सूर्य, चन्द्र, शनि, शुक्र आदि ग्रह, अश्विनी, भरिणी आदि…
आर्यखण्ड मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं। उन सब के मध्य सर्वप्रथम द्वीप का नाम जंबूद्वीप है। यह एक लाख योजन (४० करोड़ मील) विस्तार वाला, थाली के समान गोल है। इस द्वीप के बीचों-बीच एक लाख योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है जिसका भूमि पर विस्तार दस हजार योजन है। इस जंबूद्वीप में…
षट्काल परिवर्तन ‘‘भरत और ऐरावत क्षेत्र में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी इन दो कालों के द्वारा षट्काल परिवर्तन होता रहता है। इनमें से अवसर्पिणी काल में जीवों के आयु, शरीर आदि की हानि एवं उत्सर्पिणी में वृद्धि होती रहती है।’’ अवसर्पिणी के सुषमा-सुषमा, सुषमा, सुषमा-दुःषमा, दुःषमा-सुषमा, दुःषमा और अतिदुःषमा ऐसे छः भेद हैं। ऐसे ही उत्सर्पिणी…
जम्बूद्वीप णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। अनादिसिद्ध अनंतानंत आकाश के मध्य में चौदह राजू ऊँचा, सर्वत्र सात राजू मोटा, तलभाग में पूर्व पश्चिम सात राजू चौड़ा, घटते हुए मध्य में एक राजू चौड़ा, पुन: बढ़ते हुए ब्रह्म स्वर्ग तक पांच राजू चौड़ा और आगे घटते-घटते सिद्धलोक के पास एक…
आर्यखण्ड मध्यलोक में असंख्यात द्वीप और असंख्यात समुद्र हैं। उन सब के मध्य सर्वप्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है। यह एक लाख योजन (४० करोड़ मील) विस्तार वाला, थाली के समान गोल है। इस द्वीप के बीचों-बीच एक लाख योजन ऊँचा सुमेरू पर्वत है जिसका भूमि पर विस्तार दस हजार योजन है। इस जम्बूद्वीप में…