अढ़ाई द्वीप के चन्द्र (परिवार सहित) (चार्ट नं.-५)
अढ़ाई द्वीप के चन्द्र (परिवार सहित) (चार्ट नं.-५)
अढ़ाई द्वीप के चन्द्र (परिवार सहित) (चार्ट नं.-५)
ढाई द्वीप एवं दो समुद्र सम्बन्धी सूर्य चन्द्रादिकों का प्रमाण नोट—सर्वत्र ही १-१ चन्द्र, १-१ सूर्य (प्रतीन्द्र), ८८-८८ ग्रह, २८-२८ नक्षत्र एवं ६६ हजार ९७५ कोड़ाकोड़ी तारे हैं। इतने प्रमाण परिवार देव समझना चाहिये। इस ढाई द्वीप के आगे-आगे असंख्यात द्वीप एवं समुद्र पर्यन्त दूने-दूने चन्द्रमा एवं दूने-दूने सूर्य होते गये हैं।
एक चन्द्र का परिवार इन ज्योतिषी देवों में चन्द्रमा इन्द्र है तथा सूर्य प्रतीन्द्र है। अत: एक चन्द्र (इन्द्र) के—१ सूर्य (प्रतीन्द्र), ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र, ६६ हजार ९७५ कोड़ाकोड़ी तारे ये सब परिवार देव हैं।
चार्ट नं-४ ज्योतिष्क देवों के बिम्बों का प्रमाण
चार्ट नं-३ ज्योतिष्क देवों की पृथ्वी तल से ऊँचाई
ज्योतिर्लोक का वर्णन ज्योतिष्क देवों के भेद ज्योतिष्क देवों के ५ भेद हैं—१. सूर्य, २. चन्द्रमा, ३. ग्रह, ४. नक्षत्र, ५. तारा। इनके विमान चमकीले होने से इन्हें ज्योतिष्क देव कहते हैं। ये सभी विमान अर्धगोलक के सदृश हैं तथा मणिमय तोरणों से अलंकृत होते हुये निरन्तर देव-देवियों से एवं जिनमंदिरों से सुशोभित रहते हैं।…
ज्योतिर्लोक जिनालय स्तोत्र -गणिनी ज्ञानमती -शंभु छंद- पृथ्वी से सात शतक नब्बे, योजन ऊपर ज्योतिष सुर हैं। रवि शशि ग्रह नखत और तारे, ये पाँच भेद ज्योतिष सुर हैं।। सबके विमान में जिनमंदिर, मणिमय शाश्वत जिनप्रतिमायें। उनको मैं भक्ती से वंदूँ, ये मोक्षमार्ग को दिखलायें।।१।। –गीता छंद– जय जय जिनेश्वर धाम जग में, इंद्र सौ…
भू-भ्रमण का खण्डन (श्लोकवार्तिक तीसरी अध्याय के प्रथम सूत्र की हिन्दी से) कोई आधुनिक विद्वान कहते हैं कि जैनियों की मान्यता के अनुसार यह पृथ्वी वलयाकार चपटी गोल नहीं है। किन्तु यह पृथ्वी गेंद या नारंगी के समान गोल आकार की है। यह भूमि स्थिर भी नहीं है। हमेशा ही ऊपर नीचे घूमती रहती है…
योजन एवं कोस बनाने की विधि पुद्गल के सबसे छोटे अविभागी टुकड़े को परमाणु कहते हैं। ४ कोस का १ लघु योजन ५०० लघु योजनों का १ महायोजन २००० धनुष का १ कोस है। अत: १ धनुष में ४ हाथ होने से ८००० हाथ का १ कोस हुआ एवं १ कोस में २ मील मानने…
ज्योतिर्वासी देवों में उत्पत्ति के कारण देवगति के ४ भेद हैं—भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिर्वासी एवं वैमानिक। सम्यग्दृष्टि जीव वैमानिक देवों में ही उत्पन्न होते हैं। भवनत्रिक (भवन, व्यन्तर, ज्योतिष्क देव) में उत्पन्न नहीं होते हैं क्योंकि ये जिनमत के विपरीत धर्म को पालने वाले हैं, उन्मार्गचारी हैं, निदानपूर्वक मरने वाले हैं, अग्निपात, झंझावात आदि से मरने…