अढ़ाई द्वीप के चन्द्र (परिवार सहित) (चार्ट नं.-५)
अढ़ाई द्वीप के चन्द्र (परिवार सहित) (चार्ट नं.-५)
अढ़ाई द्वीप के चन्द्र (परिवार सहित) (चार्ट नं.-५)
मनुष्य क्षेत्र का वर्णन मानुषोत्तर पर्वत के इधर-उधर ४५ लक्ष योजन तक के क्षेत्र में ही मनुष्य रहते हैं। अर्थात्— जम्बूद्वीप का विस्तार १ लक्ष योजन लवण समुद्र के दोनों ओर का विस्तार ४ लक्ष योजन धातकी खण्ड के दोनों ओर का विस्तार ८ लक्ष योजन कालोदधि समुद्र के दोनों ओर का विस्तार १६ लक्ष…
पुष्करार्ध द्वीप के सूर्य, चन्द्र पुष्करवर द्वीप १६ लाख योजन का है। उसमें बीच में वलयाकार (चूड़ी के आकार वाला) मानुषोत्तर पर्वत है। मानुषोत्तर पर्वत के इस तरफ ही मनुष्यों के रहने के क्षेत्र हैं। इस आधे पुष्करवर द्वीप में भी धातकीखण्ड के समान दक्षिण और उत्तर दिशा में दो इष्वाकार पर्वत हैं। जो एक…
कालोदधि के सूर्य, चन्द्रादिकों का वर्णन कालोदधि समुद्र का व्यास ८ लाख योजन का है। यहाँ पर ४२ सूर्य एवं ४२ चन्द्रमा हैं। यहाँ पर ५१० योजन प्रमाण वाले २१ गमन क्षेत्र अर्थात् वलय हैं। यहाँ पर भी प्रत्येक वलय में २-२ सूर्य एवं चन्द्र तथा उनकी १८४-१८४ एवं १५-१५ गलियाँ हैं। मात्र परिधियाँ बहुत…
धातकीखण्ड के सूर्य चन्द्रादि का वर्णन धातकीखण्ड का व्यास ४ लाख योजन का है। इसमें १२ सूर्य एवं १२ चन्द्रमा हैं। ५१० योजन प्रमाण वाले यहाँ पर ६ गमन क्षेत्र हैं। एक-एक गमन क्षेत्रों में पूर्ववत् २-२ सूर्य-चन्द्र परिभ्रमण करते हैं। जम्बूद्वीप के समान ही इन एक-एक गमन क्षेत्रों में सूर्य की १८४-१८४ गलियाँ एवं…
लवण समुद्र के ज्योतिष्क देवों का गमन क्षेत्र लवण समुद्र में ४ सूर्य एवं ४ चन्द्रमा हैं। जम्बूद्वीप के समान ही ५१० योजन प्रमाण वाले वहाँ पर दो गमन क्षेत्र हैं। दो-दो सूर्य एक-एक गमन क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। यहाँ के समान ही वहाँ पर ५१० योजन में १८४ गलियाँ हैं। उन गलियों में…
कुभोग भूमियाँ मनुष्य का वर्णन इन द्वीपों में रहने वाले मनुष्य, कुभोग भूमियाँ कहलाते हैं। इनकी आयु असंख्यात वर्षों की होती है। पूर्व दिशा में रहने वाले मनुष्य — एक पैर वाले होते हैं। पश्चिम दिशा में रहने वाले मनुष्य — पूंछ वाले होते हैं। दक्षिण दिशा में रहने वाले मनुष्य — सींग वाले होते…
अन्तर्द्वीपों का वर्णन इस लवण समुद्र के दोनों तटों पर २४ अन्तर्द्वीप हैं। (चार दिशाओं के ४ द्वीप, ४ विदिशाओं के ४ द्वीप, दिशा-विदिशा की ८ अन्तरालों के ८ द्वीप, हिमवन और शिखरी पर्वत के दोनों तटों के ४ और भरत, ऐरावत के दोनों विजयार्द्धों के दोनों तटों के ४ इस प्रकार—४ ± ४ ±…
लवण समुद्र में ज्योतिष्क देवों का गमन लवण समुद्र के ज्योतिर्वासी देवों के विमान पानी के मध्य में होकर ही घूमते रहते हैं क्योंकि लवण समुद्र के पानी की सतह ज्योतिषी देवों के गमन मार्ग की सतह से बहुत ऊँची है। अर्थात् विमान ७९० से ९०० योजन की ऊँचाई तक ही गमन करते हैं और…
लवण समुद्र का वर्णन एक लाख योजन व्यास वाले इस जम्बूद्वीप को घेरे हुये वलयाकार २ लाख योजन व्यास वाला लवण समुद्र है। उसका पानी अनाज के ढेर के समान शिखाऊ ऊँचा उठा हुआ है। बीच में गहराई १००० योजन की है। समतल से जल की ऊँचाई अमावस्या के दिन ११००० योजन की रहती है…