भगवान धर्मनाथ वन्दना
श्री धर्मनाथ वन्दना दोहा लोकोत्तर फलप्रद तुम्हीं, कल्पवृक्ष जिनदेव। धर्मनाथ तुमको नमूँ, करूँ भक्ति भर सेव।।१।। गीता छंद जय जय जिनेश्वर धर्म तीर्थेश्वर जगत विख्यात हो। जय जय अखिल संपत्ति के, भर्ता भविकजन नाथ हो।। लोकांत में जा राजते, त्रैलोक्य के चूड़ामणी। जय जय सकल जग में तुम्हीं, हो ख्यात प्रभु चिंतामणी।।२।। एकेन्द्रियादिक योनियों...