मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र श्री रामचन्द्र अपने समय में एक ऐसे महापुरुष हुये हैं कि उन जैसे आदर्श जीवन का उदाहरण अन्य दूसरा भारतीय इतिहास में ढू़ंढे भी नहीं मिलता है। उनका संपूर्ण जीवन पद-पद पर अनेक संघर्ष से परिपूर्ण रहा है और उन सभी संघर्षों में वे महामना विजयी हुये हैं मर्यादा की…
राम को केवलज्ञान व निर्वाण सीता का जीव प्रतीन्द्र अपने अवधिज्ञान से उन्हें देखकर स्नेह से आद्र्र हो वहाँ आता है और सोचता है कि ‘‘मैं इन्हें ध्यान से विचलित कर दूं तो ये मोक्ष न जाकर स्वर्ग में आ जावेंगे। यहाँ पर हमारे से मित्रता को प्राप्त होंगे। चिरकाल तक हम दोनों मेरु, नन्दीश्वर…
श्रीरामचन्द्र-सीता आदि की भवावली राजा विभीषण ने सकलभूषण केवली को नमस्कार कर पूछा – ‘‘भगवन्! श्रीराम ने पूर्व भवों में कौन-सा पुण्य किया था? सती सीता के शील में लोकापवाद क्यों हुआ? रावण से लक्ष्मण का वैर कब से था? इत्यादि। मैं आपके दिव्यवचनों से इन सभी के पूर्वभवों को सुनना चाहता हूँ।’’ तब केवली…
राम की दीक्षा राजसभा में बैठे हुए श्रीराम शत्रुघ्न से राज्य संभालने को कहते हैं किन्तु जब वह दीक्षा के भाव व्यक्त करता है तब अनंगलवण के पुत्र अनन्तलवण का राज्याभिषेक कर देते हैं। इसी बीच अर्हदास सेठ प्रवेश करते हैं। राम पूछते हैं – ‘‘भद्र! मुनि संघ में कुशल है ना?’’ ‘‘हे नाथ! आपके…
लक्ष्मण की मृत्यु – राम का मोह देवों की सभा लगी हुई है। सौधर्म इन्द्र अपने सिंहासन पर आरूढ़ हैं। अर्हंतदेव की भक्ति का उपदेश दे रहे हैं। उपदेश के अनन्तर इन्द्र चिंता निमग्न हो सोच रहे हैं – ‘‘अहो! यहाँ की आयु पूर्ण कर मैं मनुष्य पर्याय कब प्राप्त करूँगा? तप के द्वारा कर्मों…
सीता की अग्नि परीक्षा श्री रामचन्द्र अपने सिंहासन पर आरूढ़ हैं। सुग्रीव, हनुमान, विभीषण आदि आकर नमस्कार कर निवेदन करते हैं – ‘‘प्रभो! सीता अन्य देश में स्थित है उसे यहाँ लाने की आज्ञा दीजिए।’’ रामचन्द्र गर्म निःश्वास लेकर कहते हैं – ‘‘बंधुओं! यद्यपि मैं उसके विशुद्ध शील को जानता हूँ फिर भी लोकापवाद से…
राम-लक्ष्मण व लव-कुश के युद्धोपरान्त पिता-पुत्र मिलन रत्नजटित सिंहासन पर लव-कुश विराजमान हैं। नारद प्रवेश करते हैं, देखते ही दोनों वीर उठकर खड़े होकर विनय सहित घुटने टेक कर उन्हें नमस्कार कर उच्च आसन प्रदान करते हैं। प्रसन्न मुद्रा में स्थित नारद कहते हैं – ‘‘राजा राम और लक्ष्मण का जैसा वैभव है सर्वथा वैसा…
सीता निर्वासन-लव व कुश का जन्म एवम विवाह श्रीरामचन्द्र अपने सिंहासन पर विराजमान हैं। सखियों सहित सीता वहाँ आकर विनय पूर्वक नमस्कार कर यथोचित आसन पर बैठ जाती हैं पुनः निवेदन करती हैं – ‘‘हे नाथ! रात्रि के पिछले प्रहर में आज मैं ने दो स्वप्न देखे हैं सो उनका फल आपके श्रीमुख से सुनना…