पुरुष की ७२ कलाओं के नाम पुरुष की बहत्तर कलाएँ कलानिधि नाम की व्याख्या करते हुए श्रुतसागर सूरि ने पुरुष की बहत्तर कलाओं के नाम इस प्रकार बतलाये हैं :— १. गीतकला, २. वाद्यकला, ३. बुद्धिकला ४. शौचकला, ५. नृत्यकला, ६. वाच्यकला, ७. विचारकला, ८. मंत्रकला, ९. वास्तुकला, १०. विनोदकला, ११. नेपथ्यकला, १२. विलासकला, १३….
दशरथ के पिता राजा अनरण्य ने अपने छोटे पुत्र अनन्तरथ के साथ दीक्षा ली थी दूतात्तत्प्रेषिताज् ज्ञात्वा तद्वृत्तान्तमशेषतः। मासजाते श्रियं न्यस्य नार्यौ दशरथे भृतम्।।१६६।। सकाशेऽभयसेनस्य निग्र्रन्थस्य महात्मनः। राजानन्तरथेनामा प्रवव्राजातिनिः स्पृहः।।१६७।। अनरण्योऽगमन्मोक्षमनन्तस्यन्दनो महीम्। सर्वसङ्गविनिर्मुक्तो विजहार यथोचितम्।।१६८।। अत्यन्तदुस्सहैर्योगी द्वािंवशतिपरीषहै:। न क्षोभितस्ततोऽनन्तवीर्याख्यां स क्षितौ गतः।।१६९।। वपुर्दशरथो लेभे नवयौवनभूषितम्। शैलकूटमिवोत्तुङ्गं नानाकुसुमभूषितम्।।१७०।। दीक्षा धारण करने के पहले उसने राजा अनरण्य…
श्री रामचन्द्रजी ने कुंथलगिरि पर अनेक जिनमंदिर बनवाये तत्र वंशगिरौ राजन् रामेण जगदिन्दुना। निर्मापितानि चैत्यानि जिनेशानां सहस्रशः।।२७।। महावष्टम्भसुस्तम्भा युक्तविस्तारतुङ्गताः। गवाक्षहम्र्यवलभीप्रभृत्याकारशोभिताः।।२८।। सतोरणमहाद्वाराः सशालाः परिखान्विताः। सितचारुपताकाढ्या बृहद्घण्टारवाचिताः।।२९।। मृदङ्गवंशमुरजसंगीतोत्तमनिस्वनाः। झर्झरैरानवै शङ्खभेरीभिश्च महारवाः।।३०।। सततारब्धनिःशेषरम्यवस्तुमहोत्सवाः। विरेजुस्तत्र रामीया जिनप्रासादपङ्क्तयः।।३१।। रेजिरे प्रतिमास्तत्र सर्वलोकनमस्कृताः। पञ्चवर्णा जिनेन्द्राणां सर्वलक्षणभूषिताः।।३२।। उपजातिवृत्तम् एषऽपि तुङ्गः परमो महीध्रः श्रीमन्नितम्बो बहुधानुसानुः। विलम्पतीभिः कुकुभां समूहं…
श्री ऋषभदेव के चौरासी गणधर के नाम सेनान्तो वृषभः कुम्भो रथान्तो दृढसंज्ञक। धनुरन्तः शतो देवशर्मा भवान्तदेवभाक्।।५४।। नन्दनः सोमदत्ताह्वः सूरदत्तो गुणैर्गुरुः। वायुशर्मा यशोबाहुर्देवाग्निश्चाग्निदेववाक्।।५५।। अग्निगुप्तोऽथ मित्राग्निर्हलभृत् समहीधरः। महेन्द्रो वसुदेवश्च ततः पश्चाद्वसुन्धरः।।५६।। अचलो मेरुसंज्ञश्च ततो मेरूधनाह्वयः। मेरुभूतिर्यशोयज्ञप्रान्तसर्वाभिधानकौ।।५७।। सर्वगुप्तःप्रियप्रान्तसर्वो देवान्तसर्ववाक्। सर्वादिविजयो गुप्तो विजयादिस्ततः परः।।५८।। विजयमित्रो विजयिलोऽपराजितसंज्ञकः। वसुमित्रःसविश्वादिसेनः सेनान्तसाधुवाव्।।५९।। देवान्तसत्यः सत्यान्तदेवो गुप्तान्तसत्यवाक्। सत्यमित्रः सतां ज्येष्ठःसंमितो निर्मलो गुणैः।। ६०।। विनीतः संवरो…
भगवान महावीर का जन्म कुण्डलपुर में रात्रि में हुआ आषाढजोण्हपक्खछट्ठीए कुंडपुरणगराहिव-(कुंडलपुरणगराहिव……ध.आ.प. ५३५)णाहवंस-सिद्धत्थणरिंदस्स तिसिलादेवीए गब्भमागंतूणं तत्थ अट्ठदिवसाहिय-णवमासे अच्छिय चइत्त-सुक्सपक्ख-तेरसीए रत्तीए उत्तरफग्गुणीणक्खत्ते गब्भादो णिक्खंतो वड्ढमाणजिणिंदो। आषाढ़ महीना के शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन कुंडपुर (कुंडलपुर)नगर के स्वामी नाथवंशी सिद्धार्थ नरेन्द्र की त्रिशला देवी के गर्भ में आकर और वहाँ नौ माह आठ दिन रहकर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी…
दूध से अभिषेक हेतु गाय, पुष्प चढ़ाने हेतु वाटिका एवं अभिषेक, पूजा के लिए जल हेतु कुआ खुदवाने में दोष नहीं है। पयोर्थं गां जलार्थं च कूपं पुष्पसुहेतवे। वाटिका संप्रकुर्वन्ना नाति दोषधरो भवेत्।।१३३।। अर्थ-भगवान् जिनेन्द्रदेव का अभिषेक करने के लिये सुगमता से दूध की प्राप्ति हो जाय इसके लिये गाय का रखना या जिनालय में…
चक्रवर्ती हरिषेण ने पर्वतों पर जो मंदिर बनवाये थे,उनमें श्वेत पताकायें लहरा रही थीं। नमःसिद्धेभ्य इत्यक्त्वा सुमाली तमथागदत्। नामूनि शतपत्राणि न चैते वत्स तोयदाः।।२७५।। सितकेतुकृतच्छायाः सहस्राकारतोरणाः। शृङ्गेषु पर्वतस्यामी विराजन्ते जिनालयाः।।२७६।। कारिता हरिषेणेन सज्जनेन महात्मना। एतान् वत्स नमस्य त्वं भव पूतमनाःक्षणात्।।२७७।। इति श्रुत्वा ततो वप्रा कलिशेनेव ताडिता । हृदये दुःखसंतप्ताप्रतिज्ञामकरोदिमाम्।।२८७।। तब सुमाली ने ‘नमःसिद्धेभ्यः’ कहकर दशानन…
चंदन लेपन के प्रमाण (१) श्री चन्दनं विनानैव, पूजां कुर्यात्कदाचन। प्रभाते घनसारस्य, पूजा कार्या विचक्षणै:।।१२५।। अर्थ – श्री जिनेन्द्र देव की पूजा बिना चन्दन के कभी नहीं करनी चाहिए। चतुर पुरुषों को प्रात: काल के समय चन्दन से पूजा अवश्य करनी चाहिए। भावार्थ-प्रात: काल में भगवान जिनेन्द्र देव की पूजा उनके चरणारविंद के अंगुष्ट पर…
भगवान को चढ़ाने के लिये पुष्प कैसे हों ? हस्तात्प्रस्खलितं क्षितौ निपतितं लग्नं क्वचित्पादयो। यन्मूद्र्र्धोेध्र्वगतं धृतं कुवसने नाभेरधो यद्धृतम्।। स्पृष्टं दुष्टजनैैर्घनैरभिहतं यद्दूषितं कंटवै। त्याज्यं तत्कुसुमं वदंति विबुधाः भक्त्या जिनप्रीतये।।१३१।। अर्थ-जो पुष्प हाथ से गिर गया हो, पृथ्वी पर गिर पड़ा हो, पैर से छू गया हो, मस्तक पर धारण कर लिया गया हो, अपवित्र…