31. चौबीस तीर्थंकरों की पंचकल्याणक तिथियाँ का चार्ट
चौबीस तीर्थंकरों की पंचकल्याणक तिथियाँ का चार्ट
चौबीस तीर्थंकरों की पंचकल्याणक तिथियाँ का चार्ट
सम्मेदशिखर टोंक से मुक्ति प्राप्त मुनियों की संख्या का चार्ट
साधु के २८ मूलगुण (अन्तर-ग्रंथों में) मूलाचार में २८ मूलगुणों के नाम- पंचय महव्वयाइं समिदीओ पंच जिणवरुद्दिट्ठा।पंचेविंदियरोहा छप्पि य आवासया लोओमूलाचार पूर्वार्ध पृ. ५। ।।२।।आचेलकमण्हाणं खिदिसयणमदंतघंसणं चेव।ठिदिभोयणेयभत्तं मूलगुणा अट्ठवीसा दु।।३।। अर्थ – पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रियों का निरोध, छह आवश्यक, लोच, आचेलक्य, अस्नान, क्षितिशयन, अदन्तधावन, स्थितिभोजन और एकभक्त ये अट्ठाईस मूलगुण जिनेन्द्रदेव ने…
सोलह स्वर्गों के इन्द्र कल्पवासी देवों में १६ स्वर्गों के-१२ इंद्र, १४ या १६ इंद्र माने हैं। तिलोयपण्णत्ति में १२ इंद्र अथवा १६ इंद्र दो प्रकार से माने हैं। यथा— बारस कप्पा केई केई सोलस वदंति आइरिया। तिविहाणि भासिदाणिं कप्पातीदाणि पडलाणिंतिलोयपण्णत्ति भाग-२ पृ. ७८६-७८७ गाथा-११५-११६, १२०। ।।११५।। हेट्ठिम मज्झे उवरिं पत्तेक्वं ताण होंति चत्तारि। एवं…
[[श्रेणी:जिनागम_रहस्य]] == सम्यग्दर्शन का लक्षण (अन्तर-विभिन्न ग्रंथों में) समयसार ग्रन्थ में श्री कुन्दकुन्दस्वामी ने सम्यग्दर्शन का लक्षण लिखा है—(१५ ज०) भूयत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च।आसवसंवरणिज्जर बंधो मोक्खो य सम्मत्तंसमयसार पृ. ६३ श्लोक-१३।।।१३ अ०।। भूतार्थनाभिगता जीवाजीवौ च पुण्यपापं च।आस्रवसंवरनिर्जरा बंधो मोक्षश्च सम्यक्त्वम्।।१३।। उत्थानिका — शुद्धनय से जानना ही सम्यक्त्व है, ऐसा सूत्रकार कहते हैं— अन्वयार्थ —…
धर्म का लक्षण (अन्तर-विभिन्न ग्रंथों में) रत्नकरण्डश्रावकाचार में धर्म का लक्षण— सद्दृष्टिज्ञानवृत्तानि, धर्म धर्मेश्वरा विदुः। यदीय-प्रत्यनी-कानि, भवन्ति भवपद्धति।।३।। सम्यग्दर्शन औ ज्ञान चरित, ये धर्म नाम से कहलाते। धर्मेश्वर तीर्थंकर गणधर, इनको ही शिवपथ बतलाते।। इनसे उल्टे मिथ्यादर्शन, औ मिथ्याज्ञान चरित्र सभी। भव दु:खों के ही कारण हैं, निंह हो सकते सुख हेतु कभी।।३।। अर्थ —…
[[श्रेणी:जिनागम_रहस्य]] == द्वादशानुप्रेक्षा श्री कुन्दकुन्ददेव ने ‘द्वादशानुप्रेक्षा’ नाम से स्वतन्त्र ग्रंथ लिखा, उसमें ९१ गाथायें हैं। इन्हीं आचार्य द्वारा विरचित मूलाचार में भी यही क्रम रखा है। इसमें द्वादशानुप्रेक्षा नाम से एक अधिकार लिया है इन ग्रन्थों में इसी क्रम से वर्णन है एवं टीकाकारों ने भी यही क्रम लिया है उनका क्रम देखिए— कुन्दकुन्दभारती…
पूजा के प्रकार (भेद) आदिपुराण में पूजा ४ प्रकार की बताई है— कुलधर्मोऽयमित्येषामर्हत्पूजादिवर्णनम्। तदा भरतराजर्षिरन्ववोचदनुक्रमात्आदिपुराण भाग-२ पर्व-३८ पृ. २४२, श्लोक २५ से ३५ तक।।।२५।। प्रोक्ता पूजार्हतामिज्या सा चतुर्धा सदार्चनम्। चतुर्मुखमहः कल्पद्रुमाश्राष्टाह्निकोऽपि च।।२६।। तत्र नित्यमहो नाम शश्वज्जिनगृहं प्रति। स्वगृहान्नीयमानाऽर्चा गन्धपुष्पाक्षतादिका।।२७।। चैत्यचैत्यालयादीनां भक्त्या निर्मापणं च यत्। शासनीकृत्य दानं च ग्रामादीनां सदार्चनम्।।२८।। या च पूजा मुनीन्द्राणां नित्यदानानुषङ्गिणी। स…
वर्ष के ३६६ दिन श्री गौतमस्वामी ने वर्ष के ३६६ दिन-रात्रि माने हैं। एवं व्यवहार में ३६५ दिन माने हैं। पाक्षिक प्रतिक्रमण में देखिए— अह पडिवदाए विदिए तदिए चउत्थीए पंचमीए छट्ठीए सत्तमीए अट्ठमीए णवमीए दसमीए एयारसीए वारसीए तेरसीए चउद्दसीए पुण्णमासीए पण्णरस दिवसाणं पण्णरस-राईणं, (चउण्हं मासाणंअट्ठण्हं पक्खाणं वीसुत्तर-सयदिवसाणं वीसुत्तर-सयराईणं) (बारसण्हं मासाणं चउवीसण्हं पक्खाणं तिण्हं छावट्ठिसय-दिवसाणं तिण्हं…