०५. षष्टम भव पूर्व-“श्रीधर देव”
श्रीधरदेव श्रीप्रभ नामक पर्वत पर ध्यान करते हुए प्रीतिंकर मुनिराज को केवलज्ञान प्रकट हो गया और देवों ने आकर गंधकुटी की रचना करके केवलज्ञान की पूजा की। ईशान स्वर्ग के श्रीधर देव ने भी अवधिज्ञान से जान लिया कि हमारे गुरु प्रीतिंकर मुनिराज को केवलज्ञान प्रकट हो चुका है, वह भी उत्तमोत्तम सामग्री लेकर पूजा…