03.4 वीतराग चारित्र एवं उसका फल
वीतराग चारित्र एवं उसका फल निश्चयचारित्र किनके होता है ? पडिकमणपहुदिकिरियं, कुव्वंतो णिच्छयस्स चारित्तं। तेण दु विरागचरिए, समणो अब्भुट्ठिदो होदि।। (नियमसार गाथा-१५२) निश्चयनय आश्रय से जो, प्रतिक्रमणादि क्रियाएँ होती हैं। निश्चयचरित्रधारी मुनि के वे, सभी क्रियाएँ होती हैं।। इस हेतु उन्हें ही वीतराग, मुनि की संज्ञा मिल जाती है। श्रेणी में चढ़कर क्षण भर में,…