04.4 द्वादशांग श्रुत की रचना गणधर ही कर सकते हैं
द्वादशांग श्रुत की रचना गणधर ही कर सकते हैं ‘‘द्वादशांग श्रुतज्ञान क्या है ?’ ‘‘ जिनेन्द्रदेव की दिव्यध्वनि को गणधरदेव धारण करते हैं, पुन: उसे द्वादशांगरूप से गूँथते हैं अत: भगवान् की वाणी ही द्वादशांग श्रुतज्ञानरूप है। उस श्रुतज्ञान के दो भेद हैं—अंगबाह्य और अंगप्रविष्ट। इनमें से अंगप्रविष्ट के बारह भेद हैं और अंगबाह्य के…