15. सिद्ध पूजा
सिद्ध परमेष्ठी पूजा स्थापना गीता छन्द श्री सिद्ध परमेष्ठी अनन्तानन्त त्रैकालिक कहे। त्रिभुवन शिखर पर राजते, वह सासते स्थिर रहें।। वे कर्म आठों नाश कर, गुण आठ धर कृतकृत्य हैं। कर थापना मैं पूजहूँ, उनको नमें नित भव्य हैं।।१।। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्रीसिद्धपरमेष्ठिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं णमो…