14. महामंडलाराधना
महामंडलाराधना जिनानामपि सिद्धानां महर्षीणां समर्चनात्। पाठात्स्वस्त्ययनस्यापि मन:पूर्वं प्रसादये।।१।। मन: प्रसत्तिसूचनार्थं अर्चनापीठाग्रत: पुष्पांजलिं क्षिपेत्। अर्हन्त पूजा स्थापना गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन…