सदी की महान आराधिका : गणिनी माताजी भारत एक अध्यात्मप्रधान देश है। संस्कृति और सभ्यता के कारण इस देश की प्रसिद्धि पूरे विश्व में व्याप्त है। सुदृढ़ भारतीय सभ्यता के विकास में श्रमण संस्कृति का योगदान उल्लेखनीय है। विश्व संस्कृति के विकास में अहिंसा एवं अपरिग्रह सिद्धान्तों से मण्डित दिगम्बर जैन श्रमण परम्परा का अवदान...
मिथ्यात्व त्याग प्र. आ. चंदनामती माताजी : अक्सर श्रावक स्वाध्याय करके मिथ्यात्व त्याग का नियम करते है। पर मुश्किल कि घडी मे उसे द्रुढता से निभाना कठिन होता है। क्या आपने श्रावक अवस्था मे ऐसी परिक्षा कि घडी का अनुभव किया है ? ग.प्र.आ.शि.ज्ञानमती माताजी : संयोगवश मेरे पूर्वजन्म के संस्कार भी ऐसे द्रुढ...
जंबूद्वीप स्थल में एक वर्ष तक विधान (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) एक वर्ष तक विधान- जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति का सारे भारत में भ्रमण होने से उसमें बोली लेने वाले यहाँ आकर ‘प्रतिष्ठा के समय सुमेरु पर्वत की पांडुक शिला पर भगवान का अभिषेक करेंगे’, इसका जोर-शोर से प्रचार हुआ था अतः सर्वकार्य एवं महान् प्रतिष्ठा का कार्य निर्विघ्न संपन्न...
जंबूद्वीप मॉडल को भारत में घुमाने की भावना (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) गांधीनगर दिल्ली में प्रभावना-यहाँ कूचा सेठ में मुझे ज्वर आ गया, कई दिनों अस्वस्थ रही, पुनः स्वस्थ हुई, तब गांधीनगर वालों की भक्ति से गांधीनगर आ गई। यहाँ पंडित प्रकाशचंद जैन हितैषी, जो कि सन्मति संदेश के संपादक हैं, मेरे पास आकर शास्त्र चर्चायें किया करते...
तारंगा सिद्धक्षेत्र दर्शन (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) क्रम-क्रम से चलते हुए संघ तारंगा पहुँचा। वहाँ किसी कारणवश सामान की ट्रक व बस बाहर ही रह गई। साधुवर्ग तो पदविहारी थे यथासमय तारंगा क्षेत्र के मंदिर में पहुँच गये। जिनप्रतिमाओं का दर्शन कर धर्मशाला में विश्राम करने लगे किन्तु समय पर श्रावकगण नहीं आ पाये। धीरे-धीरे कुछ ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणियाँ...
वैराग्य चर्चा प्रगट हो गई (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) एक दिन बढ़िया-बढ़िया गहनों के नमूने लेकर मुनीम घर पर आया और बोला-‘‘लाला ने कहा है, कि जाओ, मैना से गहने की डिजाइन पसंद करा लाओ।’’ मैंने कहा-‘‘जाओ, शान्ति से पसंद करा लो।’’ माँ सब देख रही थीं। बस, उनके हृदय का बाँध टूट गया और वे फूट-फूटकर रोने...
कुलपति की तकनीकी प्रक्रिया सफल हुई (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) ध्यान में दर्शन दिया भगवान ऋषभदेव ने- २३ अक्टूबर १९९२ धनतेरस तिथि को मैं प्रातः ४ बजे सामायिक के पश्चात् पिण्डस्थ ध्यान कर रही थी, उस मध्य मुझे विशालकाय खड्गासन भगवान ऋषभदेव के दर्शन हुए और अनुभूति कुछ ऐसी हुई कि ये अयोध्या के भगवान हैं। उनके दर्शन...
सम्मेदशिखर वंदना (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) यहाँ ज्येष्ठ कृष्णा सप्तमी को प्रातः आहार करके हम लोगों ने पहाड़ पर चढ़ने का निर्णय लिया। तदनुसार आहार के बाद भगवान् का दर्शन करके हम पाँचों साध्वियाँ और ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणी सभी एक साथ चढ़े। मार्ग में सीता नाले के पास पहुँचकर लगभग १२ बजने के समय वहाँ एक तरफ बैठकर सामायिक किया...