मुनियों की सामाचार विधि (सर्व आरंभ और परिग्रह से रहित धर्मध्यान में तत्पर रहने वाले दिगम्बर मुनि अट्ठाईस भेदरूप मूलगुणों का पालन करते हुए अहर्निश जो अपनी प्रवृत्ति करते हैं उसका दिग्मात्र वर्णन) जो मुनि अपने जीवन में निरतिचार अट्ठाईस मूलगुणों का पालन करते हैं उनकी प्रवृत्ति कैसी होती है ? ऐसा प्रश्न होने पर…
दिगम्बर मुनियों के २८ मूलगुण भगवान जिनेन्द्रदेव की वाणी बारह अंगरूप है। इसलिए जिनवाणी को द्वादशांग वाणी कहा जाता है। इन बारह अंगों मेें सबसे पहले अंग का नाम आचारांग है। सिद्धांतचक्रवर्ती श्री वसुनंदि आचार्य ने इसे समस्त श्रुतसमूह का आधारभूत कहा है। यथा- ‘‘श्रुतस्कंधाधारभूतमष्टादशपदसहस्रपरिमाणं’’……… घातिकर्मक्षयोत्पन्नकेवलज्ञानप्रबुद्धाशेषगुणपर्याय-खचित-षट्द्रव्यनवपदार्थजिनवरोपदिष्टं द्वादशविधतपोनुष्ठानोत्पन्नानेक-प्रकारद्र्धिसमन्वितगणधरदेवरचितं मूलगुणोत्तरगुणस्वरूप-विकल्पोपायसाधनसहायफलनिरूपणप्रवणमाचारांग’’ अर्थात् जो श्रुतस्वंâध का आधारभूत है,…