चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली….
चौबीस तीर्थंकरों की सोलह जन्मभूमियों की नामावली….
महिलाओं के कर्तव्य……. संसार की दृष्टि में स्त्री और पुरुष दो अंग हैं। जैसे कुंभकार के बिना चाक से बर्तन नहीं बन सकते हैं अथवा कृषक के बिना पृथ्वी से धान्य की फसल नहीं हो सकती है उसी प्रकार स्त्री-पुरुष दोनों के संयोग के बिना सृष्टि की परम्परा नहीं चल सकती है। इतना सब कुछ…
ध्यान……. माधुरी-माताजी! आज ध्यान की चर्चा जहाँ-तहाँ चलती रहती है, वह ध्यान क्या है? और उसके कौन-कौन से भेद हैं? माताजी-एकाग्रचिन्तानिरोध होना अर्थात् किसी एक विषय पर मन का स्थिर हो जाना ध्यान है। यह ध्यान उत्तम संहनन वाले मनुष्य के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक ही हो सकता है। इस ध्यान के आर्त, रौद्र,…
दृढ़ता का ज्वलन्त उदाहरण…… सेठ प्रियदत्त अपनी भार्या और कन्या सहित श्री महामुनि धर्मकीर्ति आचार्य के समीप बैठे हुए धर्मोपदेश सुन रहे हैं। उपदेश के अनन्तर सेठ जी हाथ जोड़कर गुरु से निवेदन करते हैं- ‘‘श्रीगुरुदेव! इस अष्टान्हिक महापर्व में आठ दिन के लिए मुझे ब्रह्मचर्य व्रत प्रदान कीजिए।’’ मुनिराज भी पिच्छिका उठाकर कुछ मंत्र…
संन्यासी-संन्यासिनी…. कमला-माताजी! सभी सम्प्रदाय के साधु-ब्रह्मचारी ही होते हैं फिर उनका त्याग उत्तम फल क्यों नहीं दे सकता? माताजी-बेटी कमला! किसी-किसी सम्प्रदाय में कुछ साधु अपने साथ पत्नी को रखते हैं। ऐसे उदाहरण आज भी देखने को मिलते हैं और चतुर्थकाल में भी रखते थे जिनके उदाहरण शास्त्र में मौजूद हैं। कमला-शास्त्र में तो मैंने…
नि:शल्योव्रती…. सुगंधबाला-जीजी! शल्य किसे कहते हैं? मालती-‘‘शल्यमिव शल्य’’ जो शल्य-कांटे के समान चुभती रहे-दु:ख देवे, वह शल्य है। महाशास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र में ‘‘नि:शल्यो व्रती’’ यह सूत्र कहा है। इसका विशेष स्पष्टीकरण सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक आदि ग्रंथों में किया गया है। सर्वार्थसिद्धि में कहते हैं-‘‘शृणाति हिनस्तीति शल्यम्। शरीरानुप्रवेशिकांडादि-प्रहरणं शल्यमिव शल्यं यथा तत्प्राणिनोबाधाकारं तथा शारीरमानसबाधा-हेतुत्वात्कर्मोदयविकार: शल्यमित्युपचर्यते। तत्त्रिविधं मायाशल्यं,…
ऐतिहासिक आर्यिकाएँ……. इस युग में चतुर्थ काल प्रारंभ होने के पहले ही भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान होने के बाद ही उनके ही पुत्र वृषभसेन, जो कि पुरिमताल नगर के राजा थे, वे प्रभु से मुनि दीक्षा लेकर भगवान के प्रथम गणधर हो गये तथा भगवान की ही पुत्री१ ब्राह्मी, जो कि भरत चक्री की छोटी…
जीव दया परम धर्म है….. शुभा-माताजी! अब की महावीर जयन्ती के समय एक विद्वान् के उपदेश में मैंने सुना है कि दया, दान, पूजा, भक्ति करते-करते, करते-करते अनन्तकाल निकल गया किन्तु इस जीव का कल्याण नहीं हुआ और न ही होने का, क्योंकि ये दया, दान आदि कार्य धर्म नहीं है। उपदेश के बाद बाहर…
स्वसमय और परसमय….. त्रिशला-जीजी! आज तुमने जो आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के द्वारा किये गये समयसार के उपदेश में स्वसमय-परसमय का विवेचन सुना है, उसे हमें एक बार पुन: समझाओ? मालती-सुनो! मैं विस्तृत विवेचन के साथ तुम्हें समझाती हूँ। जीवो चरित्तदंसणणाणट्ठिउ तं हि ससमयंजाण। पुग्गलकम्म पदेशट्ठियं च तं जाण परसमयं।। अर्थात् जो जीव दर्शन, ज्ञान…
दोषारोपण से हानि…. विजया-हे माताजी! मेरे घर में निरन्तर बहुत ही अशांति मची रहती है, किस प्रकार से शान्ति हो, आप ही कुछ उपाय बतलाइये? आर्यिका–किस हेतु से अशांति रहती है, कुछ कारण तो बताओ? विजया-जहाँ तक मेरा अनुभव है बात यह है कि मेरी माँ हमेशा घर में हर किसी पर संदेह की दृष्टि…