निर्वाणकाण्ड (भाषा)
निर्वाणकाण्ड (भाषा) दोहा वीतराग वंदौं सदा, भावसहित सिरनाथ। कहूँ काण्ड निर्वाणकी, भाषा सुगम बनाय।।१।। चौपाई अष्टापद आदीश्वर स्वामि, वासुपूज्य चंपापुरि नामि। नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वंदौं भाव-भगति उर धार।।२।। चरम तीर्थंकर चरम-शरीर, पावापुरि स्वामी महावीर। शिखरसम्मेद जिनेसुर बीस, भावसहित वंदौं निश-दीस।।३।। वरदत्तराय रु इंद्र मुनिंद्र, सायरदत्त आदि गुणवृंद। नगर तारवर मुनि उठकोड़ि, वंदौं भावसहित कर जोड़ि।।४।।...