स्याद्वाद-चन्द्रिका में सिद्धान्त सप्ततत्व, नव पदार्थ :-स्याद्वाद चन्द्रिका में चतुरनुयोगी जैन सिद्धान्त मान्य सात तत्वों जीव, अजीव , आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष एवं पुण्य पाप को सम्मिलित कर नव पदार्थों का सम्यक् विवेचन किया गया है। नियमसार में उल्लिखित तत्त्वों की निरूपण “ौली प्रत्यक्ष, आगम, युक्ति, तर्क आदि के आधार को लेकर है। माता…
उपसंहार स्याद्वाद चन्द्रिका विशयक यह विवेचना ग्रंथ के कथ्य को सर्वसामान्य हेतु प्रकट करने का प्रयास है। इसमें सत्य अर्थात व्यवहार नय और तथ्य अर्थात निष्चय नय दोनों के सफल रूप में अनेकान्त स्याद्वाद की सिद्धि हेतु दर्षन होते हैं। सापेक्ष “शैली से नियमसार रूप रत्नत्रय मोक्षमार्ग के निरूपण से पाठक को पथ्यापथ्य का…
टीकाकर्त्री की प्रशस्ति किसी भी ग्रंथकर्ता और गंरथ के परिचय के लिए प्रषस्ति का बहुत महत्व होता है। इसमें ग्रंथ लेखन का अपेक्षित इतिवृत्त, ग्रंथकर्ता का जीवन, तत्कालीन परिस्थिति, द्रव्य क्षेत्र काल भाव आदि का भी समावेष होता है। मुझे स्याद्वाद चन्द्रिका की कर्त्री पू० आर्यिका ज्ञानमती जी द्वारा लिखित प्रषस्ति का आषय यहां प्रस्तुत…
माता जी की युग – परिस्थिति न्याय प्रभाकर सिद्धान्त वाचस्पति पू० गणिनी आर्यिका रत्न ज्ञानमती जी ने जब त्याग मार्ग में प्रवेष किया उस समय समाज में गृहीत मिथ्यात्व, संस्कार “शान्यता, धार्मिक अज्ञान, अषिक्षा, संस्थाओं की निश्क्रियता एवं नारी का पिछडा़पन व्याप्त थे। राश्ट्र की पराधीनता के कारण देष हीन दषा ग्रस्त था। प० पू०…