पंचकल्याणक प्रतिष्ठा जैन सिद्धान्त के अनुसार कोई भी भव्य जीव तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके तीर्थंकर भगवान् के रूप में अवतार ले सकता है और अवतारी महापुरुषों में अपना नाम अंकित करा सकता है। पंचकल्याणक कोई भी जीव कालादि लब्धियों के बल से सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर देव और मनुष्यों के उत्तम-उत्तम सुखों को भोगते…
रुचकवर पर्वत की देवियाँ तीर्थंकर के जन्मकल्याणक में आती हैं एदेसु दिसाकण्णा णिवसंति णिरुवमेहिं रूवेहिं। विजया य वइजयंता जयंतणामा वराजिदया१।।१४८।। णंदाणंदवदीओ णंदुत्तरणंदिसेण त्ति। भिंगारधारिणीओ ताओ जिणजम्मकल्लाणे।।१४९।। दक्खिणदिसाए फलियं रजदं कुमुदं च णलिणपउमाणिं। चंदक्खं वेसमणं वेरुलियं अट्ठ कूडाणिं।।१५०।। उच्छेहप्पहुदीहिं ते कूडा होंति पुव्वकूड व्व। एदेसु दिसाकण्णा वसंति इच्छासमाहारा।।१५१।। सुपइण्णा जसधरया लच्छीणामा य सेसवदिणामा। तह चित्तगुत्तदेवी वसुंधरा…