महर्षि कुंदकुंददेव और उनका प्रवचनसार
महर्षि कुंदकुंददेव और उनका प्रवचनसार ‘दृश्यते निर्णीयते वस्तुतत्त्वमनेनेति दर्शनम्’ अर्थात् जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप देखा जाय निर्णीत किया जाय, वह दर्शन है। ‘‘शास्’’ धातु आज्ञा करने एवं ‘‘शंस्’’ धातु वर्णन करने अर्थ में है। ‘‘शासनात् शंसनात् शास्त्रं’’ के अनुसार शासन अर्थ में शास्त्र शब्द का प्रयोग धर्मशास्त्र के लिये किया जाता है एवं शंसन्…