आत्म संबोधन
आत्म संबोधन हे आत्मन् ! अनादिकाल से लेकर अनंतानंत काल व्यतीत हो गया आज तक तुम दु:खी ही हो ? क्यों ? उस दु:ख का कारण क्या है ? कभी सोचा ? यदि नहीं सोचा है तो अब सोचो ? अब तुम्हें जिनेन्द्र देव की वाणी को सुनने का , पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ…