भाव :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == भाव : == सुद्धं तु वियाणंतो, सुद्धं चेवप्पयं लहइ जीवो। जाणंतो दु असुद्धं, असुद्धमेवप्पयं लहइ।। —समयसार : १८३ जो अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव करता है वह शुद्ध भाव को प्राप्त करता है और जो अशुद्ध रूप का अनुभव करता है, वह अशुभ भाव को प्राप्त होता है।…