पदनिंदा :!
[[श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == पदनिंदा : == किच्चा परस्स णिंदं, जो अप्पाणं ठवेदुमिच्छेज्ज। सो इच्छदि आरोग्गं, परम्मि कडुओसहे पीए।। —भगवती आराधना : ३७१ जो दूसरों की निंदा करके अपने को गुणवान प्रस्थापित करना चाहता है, वह व्यक्ति दूसरों को कड़वी औषधि पिलाकर स्वयं रोगरहित होने की इच्छा करता है।