परमाणु :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == परमाणु : == अन्त्यादिमध्यहीनम् अप्रदेशम् इन्द्रियैर्न खलु ग्राह्यम्। यद् द्रव्यम् अविभक्तम् तं परमाणुं कथयन्ति जिना:।। —समणसुत्त : ६४३ जो आदि, मध्य और अन्त से रहित है, जो केवल एकप्रदेशी है—जिसके दो आदि प्रदेश नहीं हैं और जिसे इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता, वह विभागविहीन द्रव्य परमाणु…