उत्तर इंद्रों की महादेवियों के नाम
उत्तर इंद्रों की महादेवियों के नाम श्रीमती, रामा, सुसीमा, प्रभावती, जयसेना, सुषेणा, वसुमित्रा और वसुंधरा ये उत्तर इंद्रों की महादेवियाँ हैं।
उत्तर इंद्रों की महादेवियों के नाम श्रीमती, रामा, सुसीमा, प्रभावती, जयसेना, सुषेणा, वसुमित्रा और वसुंधरा ये उत्तर इंद्रों की महादेवियाँ हैं।
दक्षिण इंद्रों की महादेवियों के नाम शची, पद्मा, शिवा, श्यामा, कालिन्दी, सुलसा अञ्जुका और भानु ये दक्षिण इंद्रों की पट्टदेवियों के नाम हैं।
महादेवियों की परिवार देवियाँ सौधर्मद्विक में एक-एक महादेवी की परिवार देवियाँ सोलह-सोलह हजार हैं। सानत्कुमार माहेन्द्र में प्रत्येक महादेवी के ८-८ हजार परिवार देवियाँ हैं। ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर में प्रत्येक महादेवी के ४००० परिवार देवी हैं। लांतव कापिष्ठ में प्रत्येक महादेवी के २००० परिवार देवियाँ हैं। शुक्र युगल में प्रत्येक महादेवी के १००० परिवार देवियाँ हैं।…
महादेवियों की विक्रिया सभी इंद्रों की महादेवी आठ-आठ हैं। इनमें से सौधर्म ईशान की ये प्रत्येक महादेवियाँ सोलह-सोलह हजार रूप बना सकती हैं। सानत्कुमार युगल में प्रत्येक महादेवी ३२ हजार रूपों की विक्रिया कर लेती हैं। ब्रह्म युगल में प्रत्येक महादेवी ६४ हजार रूप बना लेती हैं। लांतव युगल में प्रत्येक महादेवी १२८००० रूप बना…
देवों में अवधिज्ञान और विक्रिया शक्ति का प्रमाण प्रथम दो स्वर्गों के देव घर्मा नामक पहली पृथ्वी तक विक्रिया करते हैं। सानत्कुमार युगल के देव दूसरी पृथ्वी तक, ब्रह्मादि चार स्वर्ग के देव तीसरी पृथ्वी तक, शुक्र आदि चार स्वर्गों के देव चार पृथ्वी तक, आनतादि चार स्वर्गों के देव पाँचवीं पृथ्वी तक, ग्रैवेयकवासी छठी…
देवों में लेश्यायें सौधर्म ईशान स्वर्ग के देवों में मध्यम पीत लेश्या, सानत्कुमार युगल में उत्कृष्ट पीत लेश्या और जघन्य पद्म लेश्या, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ठ, शुक्र, महाशुक्र में देवों के मध्यम पद्मलेश्या है। शतार युगल में उत्कृष्ट पद्म एवं जघन्य शुक्ल लेश्या, आनतादि चार स्वर्गों में, नव ग्रैवेयकों में देवों के मध्यम शुक्ल लेश्या…
काय प्रवीचार का वर्णन सौधर्म-ईशान स्वर्गों के देव, देवांगनाओं के साथ शरीर से काम सेवन करते हैंं। सानत्कुमार युगल के देव, देवियों के स्पर्श से, ब्रह्म आदि चार स्वर्गों के देव देवियों के रूपावलोकन से, शुक्र आदि चार स्वर्गों के देव देवांगनाओं के गीतादि सुनकर, आनत आदि चार स्वर्गों के देव अपनी-अपनी देवांगनाओं के मन…
देवों में जन्म-मरण का अंतर काल सब इंद्र उनकी महादेवियाँ, लोकपाल और प्रतीन्द्र इनका उत्कृष्ट विरह काल छह मास का है अर्थात् एक इंद्र के मरने के बाद यदि उस स्थान पर दूसरा इंद्र उत्पन्न न होवे तो अधिक से अधिक छह मास तक स्थान खाली रह सकता है पुन: दूसरा इंद्र उस स्थान पर…
देवों का आहार उच्छ्वास जिन देवों की आयु २ सागर है वे २००० वर्षों के बीत जाने पर दिव्य अमृतमय मानसिक आहार ग्रहण करते हैं अर्थात् २००० वर्ष बीतने पर उन्हें भोजन की इच्छा होते ही कण्ठ से अमृत झर जाता है और तृप्ति हो जाती हैं ये देव दो पक्ष में उच्छ्वास लेते हैं।…
अवगाहना प्रथम दो कल्प-सौधर्म ईशान में देवों के शरीर की ऊँचाई ७ हाथ, सानत्कुमार युगल में ६ हाथ, ब्रह्मोत्तर, लांतव, कापिष्ठ में ५ हाथ, शुक्र, महाशुक्र में ४ हाथ, शतार सहस्रार में ३-१/२ हाथ, आनतादि चार में ३ हाथ, अधस्तन तीन ग्रैवेयक में २-१/२ हाथ, मध्य तीन ग्रै.में २ हाथ, उपरिम तीन ग्रै. में १-१/२…