प्रत्येक नरक के प्रथम पटल और अंतिम पटल में शरीर की अवगाहना का प्रमाण
प्रत्येक नरक के प्रथम पटल और अंतिम पटल में शरीर की अवगाहना का प्रमाण
प्रत्येक नरक के प्रथम पटल और अंतिम पटल में शरीर की अवगाहना का प्रमाण
नारकियों के शरीर की अवगाहना रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम सीमंतक पटल के नारकियों के शरीर की ऊँचाई ३ हाथ है। इसके आगे के पटलों में बढ़ते-बढ़ते अंतिम १३ वें पटल में ७ धनुष ३ हाथ ६ अंगुल है। ऐसे ही बढ़ते-बढ़ते सातवीं पृथ्वी के अंतिम अवधिस्थान नामक इंद्रक बिल में ५०० धनुष प्रमाण शरीर की…
नरक में जाने के कारण जो मद्य पीते हैं, माँस की अभिलाषा करते हैं, जीवों का घात करते हैं, शिकार करते हैं, क्षणमात्र के इंद्रिय सुख के लिए पाप उत्पन्न करते हैं, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि के वशीभूत होकर असत्य वचन बोलते हैं, काम से उन्मत्त जवानी में मस्त परस्त्री में आसक्त होकर जीव…
नरक में सम्यक्त्व के कारण घम्मा आदि तीन पृथ्वियों में मिथ्यात्वभाव से संयुक्त नारकियों में से कोई जातिस्मरण से, कोई दुर्वार वेदना से व्यथित होकर, कोई देवों के संबोधन को प्राप्त कर अनंत भवों के चूर्ण करने में निमित्तभूत ऐसे सम्यग्दर्शन को ग्रहण करते हैं। पंकप्रभा आदि शेष चार पृथ्वियों के नारकी जीव देवकृत् प्रबोध…
अवधि के क्षेत्र का प्रमाण प्रथम नरक में अवधिज्ञान का विषय एक योजन है। आगे-आगे आधे-आधे कोस की हानि होकर सातवें नरक में वह एक कोस मात्र रह जाता है। यथा— प्रथम नरक में – ४ कोस (१ योजन) द्वितीय नरक में – ३-१/२ कोस तृतीय नरक में – ३ कोस चतुर्थ नरक में –…
नरक में अवधिज्ञान का वर्णन नरक में उत्पन्न होते ही अंतर्मुहूर्त के बाद छहों पर्याप्तियाँ पूर्ण हो जाती हैं और भवप्रत्यय अवधिज्ञान प्रगट हो जाता है। जो मिथ्यादृष्टी नारकी हैं उनका अवधिज्ञान विभंगावधि-कुअवधि कहलाता है एवं सम्यक्दृष्टि नारकियों का ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है।
असुरकुमारकृत दु:खों का वर्णन पूर्व में देवायु का बंध करने वाले मनुष्य या तिर्यंच अनंतानुबंधी में से किसी एक का उदय आ जाने से रत्नत्रय को नष्ट करके असुरकुमार जाति के देव होते हैं। सिकनानन, असिपत्र, महाबल, रुद्र, अंबरीष आदिक असुरकुमार जाति के देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी तक जाकर नारकियों को क्रोध उत्पन्न करा-करा कर…
नारकी के दु:खों के भेद नरकों में नारकियों को चार प्रकार के दु:ख होते हैं। क्षेत्र जनित, शारीरिक, मानसिक और असुरकृत्। नरक में उत्पन्न हुए शीत, उष्ण, वैतरणी नदी, शाल्मलिवृक्ष आदि के निमित्त से होने वाले दु:ख क्षेत्रज दु:ख कहलाते हैं। शरीर में उत्पन्न हुए रोगों के दु:ख और मार-काट, कुंभीपाक आदि के दु:ख शारीरिक…
तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके नरक जाने वालों का वर्णन कोई-कोई जीव इस मध्यलोक में तीर्थंकर प्रकृति के बंध के पहले यदि नरकायु का बंध कर लेते हैं तो पहले, दूसरे या तीसरे नरक तक जा सकते हैं वें तीर्थकर प्रकृति के सत्त्व वाले जीव भी वहाँ पर असाधारण दु:खों का अनुभव करते रहते हैं…
नारकियों का आहार और मिट्टी के दोष कुत्ते, गधे आदि जानवरों के अत्यन्त सड़े हुए माँस और विष्टा आदि की अपेक्षा भी अनंतगुणी दुर्गंधि से युक्त ऐसी उस नरक की मिट्टी को घम्मा नरक के नारकी अत्यन्त भूख की वेदना से व्याकुल होकर भक्षण करते हैं और दूसरे आदि नरकों में उससे भी अधिक गुणी…