रसोई घर की शुद्धि में महिलाओं की भूमिका लेखिका —कुमुदनी जैन,कानपुर निवासी ,जम्बूद्वीप—हस्तिनापुर प्र० जैन धर्म में भगवान् महावीर ने २ प्रकार के मार्ग बतलाये हैं मुनि मार्ग और गृहस्थ मार्ग । ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं अर्थात् दोनों के सम्मिलन से ही मोक्ष का मार्ग साकार हो सकता है । जहाँ…
लोक का वर्णन सामान्य लोक सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित अनन्तानन्त अलोकाकाश के बहुमध्य भाग में ३४३ राजु प्रमाण पुरुषाकार लोकाकाश है। यह लोकाकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पाँचों द्रव्यों से व्याप्त है। अनादि अनन्त है। इस लोक के तीन भेद हैं- अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक। सम्पूर्ण लोक की ऊँचाई १४ राजुप्रमाण है…
समाज और संस्कारों के निर्माण में नारी का योगदान श्रीमति सुलेखा जैन, बीना नारी सृष्टि का आधार है। नारी के बिना संसार की हर रचना अपूर्ण तथा रंगहीन है। नारी मृदु होते हुए भी कठोर है। उसमें पृथ्वी जैसी सहनशीलता, सूर्य जैसा ओज तथा सागर जैसा गांभीर्य एक साथ दृष्टिगोचर होता है । नारी के…
ब्राह्मी- सुन्दरी ने दीक्षा क्यों ग्रहण की ? महापुराण के अन्तर्गत आदिपुराण ग्रन्थ के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी को युग की आदि में सर्वप्रथम विद्या ग्रहण कराया था अत: वे अपने पिता त्रैलोक्यगुरु के अनुग्रह से सरस्वती की साक्षात् प्रतिमा के समान बन गई थीं पुन: भरत आदि पुत्रों को भी भगवान…
जैन— संस्कृति का मुकट—मणि—कनार्टक एवं उसकी कुछ यशस्विनी श्राविकाएँ कनार्टक-प्रदेश, भारतीय संस्कृति के लिये युगों-युगों से, एक त्रिवेणी-संगम के समान रहा है। भारतीय-भूमण्डल के तीर्थयात्री अपनी तीर्थयात्रा के क्रम में यदि उसकी चरण-रज-वन्दन करने के लिए वहाँ न पहुँच सकें, तो उनकी तीर्थयात्रा अधूरी ही मानी जायेगी। जैन-संस्कृति, साहित्य एवं इतिहास से यदि कर्नाटक को…
जिन मंदिर मुनिराजों से सुना है कि एक परावर्तन काल में ४८ मनुष्य भव मिलते हैं। जिनमें सोलह पुरुष के सोलह स्त्री के और सोलह नपुंसक के होते हैं। इनमें अनेक भव गरीबी बिमारी और तीव्र कषायमय होते है। केवल आठ भव ही ऐसे होते हैं। जिनमें मंद कषाय का उदय होता है। अर्थांत…
माताजी द्वारा समयसार अनुवाद प्रारंभ। (ज्ञानमती_माताजी_की_आत्मकथा) समयसार अनुवाद प्रारंभ- द्वितीय ज्येष्ठ शुक्ला ५, श्रुत पंचमी कहलाता है। दिनाँक १९ जून को जिनवाणी की पूजा कराके हम सभी ने श्रुतपंचमी की क्रिया सम्पन्न की पुनः मैंने समयसार की दोनों टीकाओं का अनुवाद शुरू किया। पहले ईसवी सन् १९७८ में मैंने दिल्ली में यह अनुवाद प्रारंभ किया…
शाकाहार एवं अहिंसा के प्रति विभिन्न धर्मों का मत जैनधर्म अहिंसा जैन धर्म का सबसे मुख्य सिद्धांत है। अिंहसा जैनधर्म का प्राण है। किसी भी जीव की हिंसा मत करो, हिंसा करने वाले का सब धर्म-कर्म व्यर्थ हो जाता है। संसार में सब को अपनी जान प्यारी है, कोई मरना नहीं चाहता, अत: किसी भी…