मुद्रा चाहे शासन वर्ग की हो या धार्मिक वर्ग की!
मुद्रा चाहे शासन वर्ग की हो या धार्मिक वर्ग की पिच्छि स्वयंपतित मयूरपिच्छ अपने स्वामी मयूर से कहते हैं—हे मयूर मित्र ! तुम अपने पंखों को गिरा रहे हो, निस्सन्देह अपने को शोभ से वंचित कर रहे हो। जैसे तारागण आकाश के सौन्दर्यवर्धक हैं वैसे हम तुम्हारे सौन्दर्य को सम्पन्न करने वाले हैं। अस्तु, तुमने…