01. प्रथम अध्याय
सहस्रनाम स्तोत्र ( प्रथम अध्याय ) शंभु छंद ‘श्रीमान्’ आप अंतर अनंत सुख, ज्ञान वीर्य दर्शन श्रीपति। बहिरंग समवसरणादि महा—वैभव प्रातिहार्यमयी श्रीपति।। इन अन्तरंग बहिरंग श्री के, स्वामी प्रभु श्रीमान् बनें। मैं प्रभु नामावलि को वंदूं, मेरे सब इच्छित कार्य बनें।।१।। प्रभु आप ‘स्वयंभू’ स्वयं हुये, निज में निज ज्ञान प्रगट करके। नहिं गुरु की…