लघु श्रुतभक्ति
लघु श्रुतभक्ति - १ जिनवर कथित, रचित गणधर से, श्रुत अंगांग बाह्य संयुत। द्वादशभेद अनेक अनन्त, विषययुत वंदूँ मैं जिनश्रुत।। अंचलिका हे भगवन् ! श्रुतभक्ती कायोत्सर्ग किया उसके हेतू। आलोचना करना चाहूँ जो अंगोपांग प्रकीर्णक श्रुत।। प्राभृतकं परिकर्म सूत्र प्रथमानुयोग पूर्वादीगत। पंच चूलिका सूत्र स्तव स्तुति अरु धर्मकथादि सहित।। सर्वकाल मैं अर्चूं पूजूँ, वंदूँ नमूँ...