दशलक्षण स्तुति
दशलक्षण स्तुति -दोहा- दशलक्षणवृष कल्पतरु, सब कुछ देन समर्थ।नमूं नमूं नित भक्ति से, फलें सर्व इष्टार्थ।।१।| -शम्भूछंद- जय उत्तम क्षमा शांतिकरणी, निज आत्मसुधानिर्झरणी है।जय उत्तम मार्दव स्वाभिमान, समरस परमामृत सरणी है।। जय उत्तम आर्जव मन वच तन, एकाग्ररूप निजध्यानमयी।जय उत्तम सत्य दिव्य ध्वनि का, हेतू है भविजन सौख्यमयी।।२।। जय उत्तम शौच निजात्मा को, शुचि पावन...