श्री रत्नमतीमातु: स्तुति:
श्री रत्नमतीमातु: स्तुति: रचयित्री-ब्र.कु. माधुरी शास्त्री श्री धर्मसागरगुरो: प्रणिपत्य भक्त्या। जग्राह त्वं शिवकरं व्रतमार्यिकाया:।। अन्वर्थनाम किल ‘‘रत्नमती’’ दधासि। त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।१।। स्वात्मैकतत्वनिरता विरताऽव्रतेभ्य:। सम्यक्त्वबोधनिपुणा प्रवणा सुवृत्ते।। स्तोत्रस्य पाठपठने श्रवणेऽनुरक्ता। त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।२।। आवश्यकीं षट्क्रियां प्रतिपालयन्ती। रत्नत्रयं भवहरं बहुमानयन्ती।। स्वाध्यायचिंतनपरा खलु सावधाना। त्वामार्यिकां प्रणिपतामि सदैव मूध्र्ना।।३।। मंत्रं सदा जपसि सौख्यकरं पवित्रं। रोगापहं सकलदु:खहरं प्रसिद्धम्।।…