परमात्मा का रिश्ता पवित्रता से है आचार्य विनम्रसागर जी दुनियाँ में परमात्मा पूजन से खुश नहीं होता है। लोग ये सोचते हैं कि हम परमात्मा की बहुत पूजन करेंगे, उसके गीत गायेंगे, उसके दर पे सर को झुकायेंगे, उसके लिए उपवास करेंगे, हवन करेंगे तो परमात्मा हमसे प्रसन्न हो जायेगा। लोग ये सोचते हैं कि…
भोगभूमिज आर्य किसी समय वज्रजंघ आर्य अपनी स्त्री के साथ कल्पवृक्ष की शोभा देखते हुए बैठे थे कि वहाँ पर आकाशमार्ग से दो चारण-ऋद्धिधारी मुनि उतरे। वज्रजंघ के जीव आर्य ने शीघ्र ही पत्नी सहित खड़े होकर उनका विनय करके नमस्कार किया। उस समय उन दोनों दम्पत्ति के नेत्रों से हर्षाश्रु निकल रहे थे। दोनों…
गुरू पूर्णिमा महोत्सव मनुष्य जीवन में माता पिता और गुरु का महत्व विश्व भर में सर्वोपरि माना जाता है । माता पिता का इसलिये कि वे हमें जन्म देते हैं और गुरु इसलिये कि गुरू ही वास्तव में हमे मानव, इन्सान, मनुष्य बनाते है मनुष्यता, मानवीयता या इन्सानियत के संस्कार देते हैं। इस प्रकार गुरु…
समयसार भी आत्मा के साथ कर्म का सम्बन्ध मानता है यूँ तो आचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने गोम्मटसार में कहा है— पयडी सील सहाओ, जीवंगाणं अणाइसंबंधो। कणयोवले मलं वा, ताणत्थित्तं सयं सिद्धं।। अर्थात् जीव और कर्म का अनादिकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है और यही उनका स्वभाव बन गया है। जिस प्रकार खान से…
समयसार में मुनियों को रत्नत्रय धारण करने की प्रेरणा समयसार ग्रन्थ में आचार्य श्री कुन्दकुन्द देव ने मुख्यरूप से तो शुद्धात्म तत्त्व का ही वर्णन किया है किन्तु अनेक स्थानों पर मूल गाथाओं में उन्होंने ‘मुनी’ अथवा ‘साधु’ शब्द ग्रहण करके इस बात को प्रद्योतित किया है कि नग्न दिगम्बर मुनिराज ही व्यवहार क्रियाओं के…
दिल्ली में गजरथ महोत्सव (ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा) जन्मदिवस समारोह २३ अक्टूबर १९८० आश्विन शुक्ला पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) को मेरे जन्म दिवस का समारोह रखा गया। यद्यपि मेरा पूर्ण विरोध था, फिर भी पन्नालाल जी सेठी डीमापुर वालों ने आग्रहपूर्वक यह कार्यक्रम कराया। इस कार्यक्रम के साथ समयसार प्रशिक्षण शिविर का आयोजन भी रखा गया।…
क्षुल्लिका वीरमती जी की आर्यिका दीक्षा (ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा) आचार्यश्री के निकट पुनः एक दिन मैंने प्रार्थना की कि-‘‘हे गुरुदेव! अब हमें महावीर जयंती पर आर्यिका दीक्षा दे दीजिये।’’ महाराज जी ने साधुओं से परामर्श किया। सभी साधु एक स्वर से मेरे पक्ष में थे अतः महाराज जी ने ब्र. सूरजमल को बुलाया और…
समणसुत्तं में प्रतिपादित ज्ञान-मीमांसा तीर्थकर महावीर के २५०० वें निर्वाण वर्ष की अनेक उपलब्धियें में ‘समणसुत्तं ‘ जैसा आगम शास्त्र एक स्थायी सर्वमान्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है । दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं के प्राकृत आगमों से विषयानुसार गाथायें चयनकर इसे पूज्य जिनेन्द्र वर्णी जी ने भूदान और गांधीवादी एवं सर्वोदयी चिंतनधारा के लिये समर्पित राष्ट्रसंत विनोबा…