दान की महिमा मंगलाचरण जय उसह णाहिदंसण तिहुवणणिलयेकदीव तित्थयर। जय सयलजीववच्छल णिम्मलगुणरयणणिहि णाह।।१।। ‘दा’ धातु से देने अर्थ में ‘‘दान’’ शब्द बनता है, इसकी महिमा प्रायः समस्त ग्रन्थों में बताई गयी है क्योंकि दान देने वाला प्राणी आकाश के समान स्वच्छ, निर्मल कान्ति से युक्त होता है। जैसे बादल समुद्र से वाष्प लेते—लेते…
भगवान पार्श्वनाथ की निर्वाणभूमि श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र का परिचय प्रस्तुति-आर्यिका चन्दनामती शाश्वत सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेदशिखर सम्पूर्ण तीर्थक्षेत्रों में सर्वप्रमुख एवं शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। इसीलिए इसे तीर्थराज कहा जाता है। इसकी एक बार वंदना-यात्रा करने से कोटि-कोटि जन्मों में संचित पापों का नाश हो जाता है। निर्वाण क्षेत्र पूजा में कविवर द्यानतराय जी ने सत्य ही…
तीस चौबीसी व्रत विधि व्रत की विधि— मध्यलोक में ढाई द्वीप तक पाँच भरत एवं पाँच ऐरावत क्षेत्र हैं। जंबूद्वीप में एक भरत, एक ऐरावत ऐसे दो क्षेत्र हैं। धातकी खंड में पूर्वधातकी खंड में एक-एक भरत, ऐरावत एवं पश्चिम धातकीखंड में एक भरत, एक ऐरावत ऐसे दो भरत और दो ऐरावत क्षेत्र हैं। इसी…
देववन्दना-प्रयोगानुपूर्वी (सामायिक विधि) देववन्दना के लिये श्रीजिनमंदिर को जावें, वहाँ उचित स्थान में बैठकर दोनों हाथों और दोनों पैरों को धोवें । अनन्तर-‘‘नि:सही नि:सही नि:सही’’ऐसा तीन बार उच्चारण कर चैत्यालय में प्रवेश करें वहां जिनेन्द्रदेव के मुख का अवलोकन कर तीन बार प्रणाम करें । अनन्तर ‘‘दृष्टं जिनेन्द्रभवनं भवतापहारि’’ इत्यादि दर्शन-स्तोत्र को वन्दना मुद्रा जोड़कर…
जैसे संस्कार वैसा जीवन कौन व्यक्ति कैसा है यह इसकी सही पहचान उसके रंग-रूप-जाति से नहीं, वरन उसके जीवनगत संस्कार से होती है। व्यक्ति के संस्कार ऊँचे हो तो छोटा होकर भी उच्च आदर्श को स्थापित कर जायेगा । यदि व्यक्ति पर संस्कार निम्न है तो उसके ऊँचे कुल में पैदा होकर भी कुलिनता पर…
अखबारों के माध्यम से गर्मियों के मौसम में आंखो का रखें खास ख्याल अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचाव जिस तरह से हम त्वचा को सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाने के लिये सनस्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह से आपकों आंखों को पराबैंगनी किरणों के नुकसान से बचाने के लिये सक्षम लेंस वाले चश्मे…
द्वादश भावना (ज्ञानार्णव ग्रंथ से) आगे इस प्राणी को ध्यान के सन्मुख करने के लिये संसार, देह, भोगादि से वैराग्य उत्पन्न कराना है, सो वैराग्योत्पत्ति के लिये एकमात्र कारण बारह भावना है; इस कारण इनका व्याख्यान इस अध्याय में किया जायेगा। सो प्रथम ही इनके भावने की (बारम्बार चिन्तवन करने की) प्रेरणा करते हैं- शार्दूलविक्रीडितम्…
पर्यावरण और जैन धर्म प्रस्तुत आलेख में प्रदूषण रहित पर्यावरण, प्रदूषित पर्यावरण एवं पर्यावरण को प्रदूषण रहित बनाने में जैन धर्म के योगदान पर प्रकाश डाला गया है। आलेख प्राकृति, विकृति एवं संस्कृति इन तीन चरणों में निबद्ध है। प्रकृति— प्रकृति से तात्पर्य पर्यावरण की उस सन्तुलित एवं प्रदूषण रहित अवस्था से है, जो प्राणी…