वर्ण एवं जाति-व्यवस्था के संबंध में आगमिक व्यवस्था और आधुनिक ऊहापोह
”वर्ण एवं जाति-व्यवस्था के संबंध में आगमिक व्यवस्था और आधुनिक ऊहापोह” -आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी चैतन्य एवं ज्ञान-दर्शन स्वभाव वाला आत्मद्रव्य अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण कर रहा है। इस परिभ्रमण के कारण हैं स्वयं उसके द्वारा उपार्जित उसके कर्म। मूलत: कर्मप्रकृतियाँ आठ हैं, जिनके उत्तर भेद १४८ और अवान्तर भेद असंख्यात लोक प्रमाण होते…