परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी के रजतमय पच्चीस वर्ष गुरुभक्त्या भवेदत्र, महारण्ये महत्पुरम्।तत्राभीष्टं फलं चैव, कल्पवल्ल्येव विन्दते।। आर्यखण्ड के गौरवशाली भारतदेश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हमें प्राचीन काल से ही तीर्थंकर महापुरुषों, महामनीषियों, महान आचार्यों एवं महान र्आियका माताओं के जीवन से परिलक्षित कराती रही है जिन्होंने न सिर्पक़ इस शस्यश्यामला भूमि…
कमंडलु– दिगम्बर जैन साधुओ के शौच का उपकरण,काठ य नारियल से निर्मित पात्र को कमंडलु कहेते है”
माँ अभयमती तर्ज— होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो………. हे माँ श्री अभयमती तुम याद बहुत आये। तेरी शान्त छवि लख मन वैरागी बन जाये।। हे माँ श्री अभयमती……. बचपन से ही मन में वैराग्य का कमल खिला। माँ ज्ञानमती जैसी गुरु का जब संग मिला।। जीवन की दिशा बदली…
नवधाभक्ति— 1.पड़गाहन,2 उच्चासन पर विराजमान करना,4 पादप्रक्षालन,5 पूजन करना, नमस्कार करना, 6 मनशुद्धि, 7 वचनशुद्धि,८ कायशुद्धि,आहार जल शुद्ध है “”