कार्यक्षमता बढ़ायें वास्तु से —सम्पत कुमार सेठी आदि ब्रह्मा एवं नारायण के बताये हुये वास्तु शास्त्र के सूत्रों से सहयोग लेवें और बढ़ायें अपनी कार्यक्षमता, मनोबल आत्म विश्वास। प्रकृति हमें सब कुछ देने के लिए तैयार है। हमें लेने का तरीका आना चाहिए। जिस मार्ग में आगे बढ़ना है, सफलता के शिखर को छूना है…
देश में एकमात्र प्राचीन आर्यिका प्रतिमा सूरत के श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन डांडिया का मंदिर, चींटा बाजार, गोपीपुरा में लगभग २ फीट ऊँची सफेद पाषाण की अपने आप में एक मात्र आर्यिका प्रतिमा विराजमान है। आर्यिका के दाहिनी और आसीन प्रतिमा के नीचे क्षुल्लिका रत्नसिरि और बाई ओर आसीन प्रतिमा के नीचे क्षुल्लिका रत्नमती अंकित…
ग्रंथकर्ता श्री जिनसेन स्वामी (धवलाटीकाकार श्री वीरसेनाचार्य के शिष्य थे) वे अत्यन्त प्रसिद्ध वीरसेन भट्टारक हमें पवित्र करें, जिनकी आत्मा स्वयं पवित्र है, जो कवियों में श्रेष्ठ हैं, जो लोकव्यवहार तथा काव्यस्वरूप के महान् ज्ञाता हैं तथा जिनकी वाणी के सामने औरों की तो बात ही क्या, स्वयं सुरगुरु बृहस्पति की वाणी भी सीमित-अल्प जान…
शास्त्रदान महिमा की कहानी कुरुमरी गाँव के एक ग्वाले ने एक बार जंगल में वृक्ष की कोटर में एक जैन ग्रंथ देखा। उसे ले जाकर उसकी खूब पूजा करने लगा। एक दिन मुनिराज को उसने वह ग्रंथ दान में दे दिया। वह ग्वाला मरकर उसी गाँव के चौधरी का पुत्र हो गया। एक दिन उन्हीं…
महापुराण प्रवचन-३ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। भव्यात्माओं! महापुराण द्वादशांग का ही अंश है, इसका सीधा संबंध भगवान महावीर की वाणी से है। इसमें प्रारंभिक भूमिका के पश्चात् सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव का दश भवों का वर्णन है, वे ऋषभदेव वैâसे बने? इस बात को उनके दश अवतारों से जानना है। दिव्याष्टगुणमूर्तिस्त्वं, नवकेवललब्धिक:।…
आओ ज्योतिष सीखें जय जिनेन्द्र । आप सभी ने ‘कालसर्प योग’ के विषय में सुना होगा और ज्यादातर लोग यह बात सुनकर डर जाते हैं कि उनकी कुण्डली में कालसर्प योग है। क्या वे लोग यह जानते हैं कि वास्तव में कालसर्प योग होता क्या है ? और इस योग के होने से उन्हें क्या…
जिनमुखावलोकन व्रत विधि किंनाम जिनमुखावलोकनं व्रतम्? को विधि:? जिनमुखदर्शनानन्तरमाहारो यस्मिन् तज्जिनमुखावलोकनं नामैतत् निरवधि व्रतम्। इदं व्रतं भाद्रपदमासे करणीयम्, प्रोषधोपवासानन्तरं पारणा पुन: प्रोषधोपवास:, एवमेव प्रकारेण मासान्तपर्यन्तमिति। अर्थ- जिनमुखावलोकन व्रत किसे कहते हैं? इसकी विधि क्या है? आचार्य उत्तर देते हैं कि प्रात:काल जिनेन्द्रमुख देखने के अनन्तर आहार ग्रहण करना जिनमुखावलोकन व्रत है। यह निरवधि व्रत होता…
तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता एवं जैन वाङ्मय को उनका अवदान तत्वार्थसूत्र जैन परंपरा का सर्वमान्य एवं प्रामाणिक ग्रंथ है, जिसे द्वितीय शताब्दी के आचार्य उमास्वामी ने संस्कृत भाषा की सूत्र शैली में निबद्ध किया है। इसमें सात तत्त्वों का विधिवत् विवेचन है। इस ग्रंथ के कत्र्ता के नाम और ग्रंथ के मंगलाचरण आदि अनेक विषयों पर…
जैन धर्म की विशेषताएँ १. जैन धर्म एक धार्मिक पुस्तक, शास्त्र पर निर्भर नहीं है। ‘विवेक ही धर्म है।’ २. जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है। ३. देश, काल और भाव के अनुसार ज्ञान दर्शन से विवेचन कर उचित—अनुचित, अच्छे—बुरे का निर्णय करना और धर्म का…