मार्गणा में आस्रव का प्रकरण
मार्गणा में आस्रव का प्रकरण विजिदचउघाइकम्मे केवलणाणेण णादसयलत्थे। वीरजिणे वंदित्ता जहाकमं मग्गणासवं वोच्छे।।२४।। विजितचतुर्घातिकर्माणं केवलज्ञानेन ज्ञातसकलार्थं। वीरजिनं वन्दित्वा यथाक्रमं मार्गणायामास्रवान् वक्ष्ये।। जिन्होंने चार घातिया कर्मों को जीत लिया है एवं केवलज्ञान के द्वारा संपूर्ण पदार्थों को जान लिया है ऐसे श्री वीर जिनेन्द्र को नमस्कार करके मैं क्रम से मार्गणाओं में आस्रवों को कहूूँगा।।२४।। पर्याप्त-अपर्याप्त…