सत्त्व प्रकरण
सत्त्व प्रकरण प्रकृतियों के सत्त्व का नियम तित्थाहारा जुगवं सव्वं तित्थं ण मिच्छगादितिए। तस्सत्तकम्मियाण तग्गुणठाणं ण संभवदि।।११०।। तीर्थाहारा युगपत् सर्वं तीर्थं न मिथ्यकादित्रये। तत्सत्वकर्मकाणां तद्गुणस्थानं न संभवति।।११०।। अर्थ—मिथ्यादृष्टि, सासादन, मिश्र इन तीनों गुणस्थानों में से क्रम से पहले में तीर्थंकर और आहारकद्वय एक काल में नहीं होते तथा दूसरे में सब (तीनों) हा किसी काल…