जीवसमास आदि जिनके द्वारा अनेक जीव संग्रह किये जायें, उन्हें जीवसमास कहते हैं। जीवसमास के चौदह भेद हैं-एकेन्द्रिय के बादर और सूक्ष्म ऐसे दो भेद, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के सैनी-असैनी ऐसे दो भेद, इस प्रकार सात भेद हो जाते हैं। इन्हें पर्याप्त–अपर्याप्त ऐसे दो से गुणा करने पर जीवसमास के चौदह भेद हो…
कृतिकर्म प्रयोग विधि अथ देववन्दनाक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजा -वंदनास्तवसमेतं चैत्यभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम् । (इस प्रतिज्ञा वाक्य को बोलकर साष्टांग या पंचांग नमस्कार करके खड़े होकर मुकुलित हाथ जोड़कर तीन आवर्त एक शिरोनति करके मुक्ताशुक्ति मुद्रा से हाथ जोड़कर सामायिक दण्डक पढ़ें।) सामायिक दण्डक णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं”” चत्तारि…
मंत्र-शक्ति (काव्य उनतालीस से सम्बन्धित कथा) सरकसों में कौशल के जितने भी कार्य दिखाये जाते हैं,उनमें सब से अधिक जोखिम का दृश्य होता है- सिहों-बब्बर शेरों-चीतों और बाघों के बीच रहकर उन पर कठोर नियंत्रण रखना, यह कार्य जहाँ एक ओर मानव के अदम्य साहस का द्योतक है,वहाँ दूसरी ओर प्राणि जगत में उसे सर्वशक्तिमान…
जल पर शोध का प्रयोजन और स्थिति —जीवराज जैन सारांश जैन दर्शन में जलकायिक जीव को पाँच स्थावर जीवों में से एक माना गया है। विज्ञान इसे मात्र एच. २ ओ के रूप में एक रसायन मानता रहा। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों ने इसमें जीवन की पुष्ठि की है। जलकायिक जीवों एवं जल पर आश्रित त्रस…
‘क्या जैन निरीश्वरवादी हैं ? सुधेश-पिताजी!आज स्कूल में मास्टर साहब ने बतलाया कि जैन नास्तिक हैं,क्योंकि वे निरीश्वरवादी हैं,सो मुझे कुछ समझ में नही आया ।आप तो बहुत बार कहा करते हैं कि जैन सच्चे आस्तिक हैं ।पिताजी-हाँ सुधेश! तुमने अच्छा प्रश्न किया है । देखो,हम बताते हैं,सुनो ।जैनों का अन्य सम्प्रदायवादियों ने इसलिए नास्तिक…
क्षयोपशम-विशुद्धि-देशना प्रायोग्यतालब्धि में ३४ बंधापसरणस्थान लेखिका – आर्यिका गरिमामती माताजी अनादि अनंत इस संसार में प्रत्येक जीव सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बिना परिभ्रमण कर रहा है। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के बिना मोक्षमार्ग की शुरुआत नहीं होती है इसीलिए सम्यत्त्व की प्राप्ति करना अत्यन्त आवश्यक है। सम्यग्दर्शन मोक्षमहल की प्रथम सीढ़ी है। बहिरात्मा को अन्तरात्मा बनाने…
आर्जव धर्म पर मोनो ऐक्टिंग लेखिका—प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती माताजी सूर्पणखा नाम की एक स्त्री रोती हुई मंच पर प्रवेश करती है और सामने राम-लक्ष्मण को देखकर उनके रूप पर मोहित होकर कहती है — ओहो ! ये तो कोई देवपुरुष अथवा कामदेव दिख रहे हैं। इन्हें देखकर मैं तो धन्य हो गई। अब तो अपने…
गुणस्थान दर्शनमोहनीय आदि कर्मों की उदय, उपशम आदि अवस्था के होने पर जीव के जो परिणाम होते हैं, उन परिणामों को गुणस्थान कहते हैं। ये गुणस्थान मोह और योग के निमित्त से होते हैं। इन परिणामों से सहित जीव गुणस्थान वाले कहलाते हैं। इनके १४ भेद हैं- १. मिथ्यात्व २. सासादन ३. मिश्र ४. अविरत…